Monday, 26 August 2019

Stambheshwar Mahadev

Stambheshwar Mahadev (स्तंभेश्वर महादेव)
स्तंभेश्वर महादेव गुजरात का एक अद्भुत मंदिर है जो खम्भात की खाड़ी समुद्र किनारे पर बसे कम्बोई ग्राम से महज ५०० कदम की दूरी पर स्थित है. इस मंदिर की सबसे ख़ास बात है की समुद्र खुद महादेव जी के शिवलिंग को २४ घंटे में २ बार अपने जल से जलाभिषेख करता है मतलब यह शिवलिंग दो बार पुरे दिन में पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है.
इस समुद्र (खम्भात की खाड़ी) में महिसागर नदी आ कर मिलती है जहा संगम बनता है. जो इस संगम पर यह विख्यात मंदिर स्थापित है. यह पवित्र संगम पर भगवन शंकर के पुत्र कार्तिकेय स्वामी के द्वारा स्थापित किया हुआ यह शिवलिंग श्री स्तंभेश्वर महादेव के नाम से प्रख्यात है. इस शिवलिंग के सिर्फ दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सभी कष्ट और विकार दूर हो जाते है इस मंदिर के प्रति श्रधालुओं का बड़ी आस्था और प्रेम रहता है.  
इस मंदिर का इतिहास कुछ इस तरह से है की ताड़कासुर नामक राक्षस जो तप करके भगवन शंकर जी से वरदान प्राप्त कर चूका की उसे कोई भी नहीं मार सकता है उसे सिर्फ ७ या ७ दिन से से काम उम्र वाला कोई भी उससे बलशाली हो वही ही मार सकता है. यह वरदान प्राप्त कर वह धरती पर सबको बहुत हैरान परेशान करने लगा सभी साधू-संत और देवता भी उससे परेशान हो गए त्राहि-माम् त्राहि-माम् पुरे धरती पर हो गया. फिर सब देवता और ऋषि मुनि भगवन शंकर के शरण में जाकर उनसे प्रार्थना और विनंती किया की इस असुर के हमें छुटकारा दिलाएं. तब जा कर शिव -महिमा से कार्तिकेय स्वामी का जन्म हुआ जिन्होंने इस ताड़कासुर को सिर्फ ७ दिन में ही समाप्त कर धरती पर रह रहे सभी लोगो को इससे मुक्त कर दिया.
ताड़कासुर भगवन शंकर के अटल भक्त होने पर कार्तिकेय स्वामी के मन में बहुत दुःख हुआ की मेने भगवन शंकर के भक्त को मार दिया, कार्तिकेय स्वामी अपने किये कर्मो का प्रायश्चित करना चाहते थे,तब वह भगवन विष्णु के पास गए और उन्होंने ने कार्तिकेय स्वामी को  सलाह दी की वे तो स्यंम भोलेनाथ है वधस्थल पर ही आप उनकी पूजा शुरू कर दीजिये वे जरूर आप से प्रसन्न होंगे और आपके मन में जो ग्लानि है वो अपने आप ख़तम हो जायेगा. तब कार्तिकेय स्वामी ने वहां पर शिवलिंग का निर्माण किया और  फिर सभी देवी -देवताओ ने मिलकर महिसागर संगम पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की. जो आज स्तंभेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रख्यात है आवर एक अलग ही छवि रखता है.

 यहाँ पर आधुनिक सुविधाएं नहीं उपलब्ध है लेकिन धीरे धीरे दुकाने  और अलग अलग प्रकार के मनोरंजन के साधन उपलब्ध हो रहे जिससे कम्बोई ग्राम के लोगो को व्यापर मिल रहा है, यह अच्छी बात है पर वहा कुछ गलत बात भी हो रहे है जिसे मंदिर में दर्शन के लिए आने जाने वाले लोग अगर थोड़ा ध्यान दे तो जो मूल है वही बना रहेगा नहीं तो कुछ दिनों में जबरजस्ती आधुनिक चीजो का रूपांतरण देखने को मिलेगा, जो इस समय प्राकृत के रूप में दिख रही है. वह लुप्त हो जायेगा, यहाँ धीरे धीरे बढ़ रहे प्रदुषण जैसे प्लास्टिक हर जगह पर फेंका हुआ दिखेगा और तमाम चीजे जो कचरे के रूम में मिलेगा या सब इस मंदिर और आस-पास की सुंदरता को बिगाड़ रहा है.
सबसे ख़राब वहां पर बने सुलभ शौचालय का गन्दा पानी भी मंदिर के बगल से बहता हुआ समुद्र में मिलता है और उसी पानी से भगवन शंकर का रोज जलभिषेख होता है,
आज से कुछ ३ साल पहले हम कुछ लोग दर्शन के लिए गए थे तब यह स्थल और भी सुन्दर था गिने चुने २ - ४ दुकाने थी दूर दूर तक कोई कचरा नहीं दिख रहा था लेकिन वही स्थान आज धीरे धीरे कचरे से और गन्दगी से उसकी खूबसूरती बिलुप्त होती जा रही है.
 



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