Thursday, 9 September 2021

HARIHAR FORT \ हरिहर किले

 

        हरिहर गढ़ या हर्षगढ़ किले
अपने आप में दम ख़म रखता हुआ और अपने साहसिक चढ़ाई thrilling adventure के लिए जाने वाला यह हरिहर किल्ला महाराष्ट्र के हर्षगढ़ गांव में स्थित है जो की त्रिम्बक में त्रिंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग से १३ किलोमीटर की दूरी पर महाराष्ट्र के नासिक जिले में आता है. बरसात के मौसम में पुरे नासिक की सौंदर्त्यता किसी के भी मन को मोह लेने में और प्राकृतिक सौंदर्त्यता तो उसके मन में उतरने के लिए मशहूर है

मुस्किलो भरी है चढ़ाई
हरिफोर्ट की यात्रा हर्षगढ़ से शुरू होकर पैदल मार्ग कंकरीले पहाड़ो जहा पर कोई मनुष्य के द्वारा बनायीं गयी सड़क या रस्ते नहीं है बस प्रकृति के द्वारा पानी के बहाव से बने रास्तो पर से ही  शुरू होती है, इसकी उचाई लगभग समुन्द्र तल ११३० मीटर पर स्थित है हर्षगढ़ गांव तक गाड़िया जा सकती है उसके बाद हमें प्रकृति के उस  रस्ते अपनाने होते है जो अपने आप में करेजा हिला के रख दे राजा. हर्षगढ़ गांव से हरिहर फोर्ट तक की दूरी लगभग ३ किलोमीटर या उससे भी कम हो सकती है हलाकि ये बात झूठ भी हो सकती है क्युकी कुछ लोगो का कहते है की २.५ किलोमीटर ही है. लेकिन अनुमानतः इतनी ही है मेरे ख्याल से शुरुआत में लगभग १ से डेढ़ किलोमीटर तक की चढ़ाई सरल और सहज है करेजा बिलकुल नहीं हिलेगा लेकिन एकबात बता दे कहीं-कहीं पर समझ ही नहीं आता है की यही से वापस जाये या इस कठिन चट्टान को किसी तरह पार करें क्युकी साला एकदम खड़ी चढ़ाई है जान लीजिये .यही तो इस हरिहर पदयात्रा का मजा है कहीं सरक कहीं सजा है. एक बात का ख़ास ध्यान देना पड़ता है की जहा भी पानी भरा है वह सतर्क रहना बड़ा जरूरी है जान िजिये २-३ ठो साप मील गए थे देखते ही फट गयी लेकिन अपने आप को बहुत सम्हाले की की ये भी प्रकृति की देन है और इनके तो यही घर है, बीच बीच में सफर थोड़ा मुश्किल भरा था लेकिन साप के बिल में हाथ डाले है तो जरूर कटेगा मतलब जब ठान लिए है की हरिहर पूरा करना है तो मुस्किलो का सामना तो लाजमी है. बड़ा असमंजस में तब पड़ जाते है जब आपको कहीं कहीं तो रस्ते ही नहीं मिलते है और कहीं ३ - ४ रस्ते दिखते है साला समझ ही नहीं आता है की कौन सा रास्ता सही है और कौन सा गलत, हलाकि सभी रास्ते आगे जा कर एक ही जगह मिलते है. बड़ी जथ्थो जहत के बाद हम उस पड़ाव पर पहुंचे है जहा से रोमांचित खड़े चट्टान पर चढ़ने का वक्त आ गया है जिसे देख के पहले ही फट जाती है लेकिन यह तो हरिहर चढ़ाई का अनमोल, अविश्वश्नीय, अद्भुत और दहसत से भरा उन २ फ़ीट से लेकर ३  फ़ीट की सीढ़ियों पर चलना तो बाकी है लेकिन जान लीजिये एक बात बहुते अच्छी लगी की सीढ़ियों पर किनारे किनारे सहारा लेने के लिए खांचे बने थे जिसके सहारे कम दिक्कत और खाँचो के सहारे कम परेशानी झेलते हुए चढ़ाई कर सकते है. लेकिन ये बाबू बहुत सारे लोग तो ललका बनरन से परेशान थे  काहे की वो सब इतने दुष्ट थे की बैग पकड़ के खींचते थे और बैग में रखे खाने वाले सामान ढूंढने लगते थे कभी कभी तो ससुरे पैंट की पॉकेट में हाथ हाथ दाल देते थे उनको कैसे बैग के चैन खोलने है वो भी बड़े अच्छे से जानते थे इसी सब की वजह से कुछ लोग खतरनाक सीढ़ियों पर चढ़ने के दौरान अपने अपने बैग को फेंकने पर मज़बूर हो जाते है और मेने कई लोगो को फेंकते हुए भी देखे है.






Wednesday, 28 August 2019

 Leh-Ladakh Bike Trip Suggestion and Points.
लेह लदाख मोटरसाइकिल यात्रा सलाह, ध्यान रखने योग्य बात
हमने लेह-लदाख यात्रा जून जुलाई महीने में पूरा किया जो वहा के लिए सबसे अच्छा समय कहलाता है. मई १५ के बाद यातायात का आना जाना सुरु हो जाता है क्युकी उसके पहले मार्ग बर्फ के द्वारा बाधित हो की वजह से यातायात बिलकुल ही बंद रहता है. यह यात्रा हमारी कुल ७००० किमी की थी हमने यात्रा शुरू किया था वड़ोदरा गुजरात से गोरखपुर, आगरा, अम्बाला, श्रीनगर के रस्ते से लदाख में प्रवेश और मनाली के रस्ते निकास किया.
अगर आप दोहरी सवारी कर रहे है और 10-१२ हजार से अगर जयदा किमी आपकी रॉयल एनफील्ड चलीं हुई है तो चैन-चक्कर बिलकुल बदलवा ले क्युकी पहाड़ियों के चढाव उतर पर आपको काफी परेशानी भी झेलनी पद सकती है, यदि आप सिंगल सवारी यात्रा कर रहे है तो कोई परेशानी नहीं होगी.
मोटरसाइकिल में सामान के लिए लोहे का बना वाहक से ज्यादा अच्छा काठी की थैली होती है जो अच्छे से उपयोग में आ जाता है आवर सामान भी सुरक्षित रहता है. सैडल बैग को आसानी से हम मोटरसाइकिल पर लटका सकते है और इसमें पर्याप्त सामान भी दो लोगो का आ जाता है

Monday, 26 August 2019

Stambheshwar Mahadev

Stambheshwar Mahadev (स्तंभेश्वर महादेव)
स्तंभेश्वर महादेव गुजरात का एक अद्भुत मंदिर है जो खम्भात की खाड़ी समुद्र किनारे पर बसे कम्बोई ग्राम से महज ५०० कदम की दूरी पर स्थित है. इस मंदिर की सबसे ख़ास बात है की समुद्र खुद महादेव जी के शिवलिंग को २४ घंटे में २ बार अपने जल से जलाभिषेख करता है मतलब यह शिवलिंग दो बार पुरे दिन में पूरी तरह से जलमग्न हो जाता है.
इस समुद्र (खम्भात की खाड़ी) में महिसागर नदी आ कर मिलती है जहा संगम बनता है. जो इस संगम पर यह विख्यात मंदिर स्थापित है. यह पवित्र संगम पर भगवन शंकर के पुत्र कार्तिकेय स्वामी के द्वारा स्थापित किया हुआ यह शिवलिंग श्री स्तंभेश्वर महादेव के नाम से प्रख्यात है. इस शिवलिंग के सिर्फ दर्शन मात्र से ही मनुष्य के सभी कष्ट और विकार दूर हो जाते है इस मंदिर के प्रति श्रधालुओं का बड़ी आस्था और प्रेम रहता है.  
इस मंदिर का इतिहास कुछ इस तरह से है की ताड़कासुर नामक राक्षस जो तप करके भगवन शंकर जी से वरदान प्राप्त कर चूका की उसे कोई भी नहीं मार सकता है उसे सिर्फ ७ या ७ दिन से से काम उम्र वाला कोई भी उससे बलशाली हो वही ही मार सकता है. यह वरदान प्राप्त कर वह धरती पर सबको बहुत हैरान परेशान करने लगा सभी साधू-संत और देवता भी उससे परेशान हो गए त्राहि-माम् त्राहि-माम् पुरे धरती पर हो गया. फिर सब देवता और ऋषि मुनि भगवन शंकर के शरण में जाकर उनसे प्रार्थना और विनंती किया की इस असुर के हमें छुटकारा दिलाएं. तब जा कर शिव -महिमा से कार्तिकेय स्वामी का जन्म हुआ जिन्होंने इस ताड़कासुर को सिर्फ ७ दिन में ही समाप्त कर धरती पर रह रहे सभी लोगो को इससे मुक्त कर दिया.
ताड़कासुर भगवन शंकर के अटल भक्त होने पर कार्तिकेय स्वामी के मन में बहुत दुःख हुआ की मेने भगवन शंकर के भक्त को मार दिया, कार्तिकेय स्वामी अपने किये कर्मो का प्रायश्चित करना चाहते थे,तब वह भगवन विष्णु के पास गए और उन्होंने ने कार्तिकेय स्वामी को  सलाह दी की वे तो स्यंम भोलेनाथ है वधस्थल पर ही आप उनकी पूजा शुरू कर दीजिये वे जरूर आप से प्रसन्न होंगे और आपके मन में जो ग्लानि है वो अपने आप ख़तम हो जायेगा. तब कार्तिकेय स्वामी ने वहां पर शिवलिंग का निर्माण किया और  फिर सभी देवी -देवताओ ने मिलकर महिसागर संगम पर विश्वनंदक स्तंभ की स्थापना की. जो आज स्तंभेश्वर महादेव मंदिर के नाम से प्रख्यात है आवर एक अलग ही छवि रखता है.

 यहाँ पर आधुनिक सुविधाएं नहीं उपलब्ध है लेकिन धीरे धीरे दुकाने  और अलग अलग प्रकार के मनोरंजन के साधन उपलब्ध हो रहे जिससे कम्बोई ग्राम के लोगो को व्यापर मिल रहा है, यह अच्छी बात है पर वहा कुछ गलत बात भी हो रहे है जिसे मंदिर में दर्शन के लिए आने जाने वाले लोग अगर थोड़ा ध्यान दे तो जो मूल है वही बना रहेगा नहीं तो कुछ दिनों में जबरजस्ती आधुनिक चीजो का रूपांतरण देखने को मिलेगा, जो इस समय प्राकृत के रूप में दिख रही है. वह लुप्त हो जायेगा, यहाँ धीरे धीरे बढ़ रहे प्रदुषण जैसे प्लास्टिक हर जगह पर फेंका हुआ दिखेगा और तमाम चीजे जो कचरे के रूम में मिलेगा या सब इस मंदिर और आस-पास की सुंदरता को बिगाड़ रहा है.
सबसे ख़राब वहां पर बने सुलभ शौचालय का गन्दा पानी भी मंदिर के बगल से बहता हुआ समुद्र में मिलता है और उसी पानी से भगवन शंकर का रोज जलभिषेख होता है,
आज से कुछ ३ साल पहले हम कुछ लोग दर्शन के लिए गए थे तब यह स्थल और भी सुन्दर था गिने चुने २ - ४ दुकाने थी दूर दूर तक कोई कचरा नहीं दिख रहा था लेकिन वही स्थान आज धीरे धीरे कचरे से और गन्दगी से उसकी खूबसूरती बिलुप्त होती जा रही है.
 



Monday, 19 August 2019

Dahel Waterfall दहेल झरना

दहेल झरना (Dahel Waterfall)



दहेल झरना एक बहुत ही खूबसूरत और अपने आप में बेहतरीन है. यह लगभग ३५० मीटर की ऊँची चोटी से गिरता है. इस झरने के तट तक पहुंचने के लिए हमें उस पहाड़ी के निचे उतरना पड़ता है. जो बहुत ही आसान नहीं है लेकिन अगर हिम्मत और सहस करे तो आसानी से वहां तक पहुँच सकते है और इस झरने का आनंद उठा सकते है.
यह चित्र निचे उतरते समय रस्ते के मध्य से लिया गया है
यह चित्र जहा से हमें झरने के लिए उतरना हे वह से लिया गया है
यह झरना निनाई झरने से सिर्फ ३२ किलोमीटर दूर और डेडियापाडा से ६२ किलोमीटर दूर है जबकि निनाई झरना डेडियापाडा से ३७ किलोमीटर की दूरी पर है. निनाई झरना की तरफ जाने के लिए हमें सगाई से ५.५  किलोमीटर आगे दायीं तरफ मुड़ना है जो दहेल के लिए जाता है जबकि वहां ठीक ३०० कदम आगे जाने के बाद एक रास्ता बायीं तरफ जाता है जो निनाई झरने तक हमें पहुंचा देगा. वहा पर एक बोर्ड भी लगाया है जिसमे दर्शाया गया है दहेल के लिए जाने वाला रास्ता.
दाहिने मुड़ने के बाद २.२ किलोमीटर के बाद फिर बाएं मुड़ना हे जो दहेल झरने की तरफ ले जायेगा 
दहेल जाने के वाला यह रास्ता थोड़ा अच्छा न होने की वजह से जाने में और वहां पहुंचने में कुछ टाइम ज्यादा लगता है. हम डेडियापाडा से निनाई लगभग 1.३० घंटे में पहुंच जाते है और वही निनाई से दहेल जाने में कम से काम 2-३ घंटे भी लग जाते है | जैसे ही हम दहेल के लिए मुड़ेंगे पतला सा छोटे- छोटे कंक्रीट वाले रोड जो हमें तेज वाहन चलाने में बाधा करते है लेकिन इसका भी एक अलग ही मजा है जो हम शहर में रहकर सिर्फ टेलीविज़न और घरो के दीवारों में टंगे चित्र में ही देख पाते है, इसलिए अगर हम तेज से चलेंगे तो सायद जो आस-पास प्रकृत निर्मित हरे भरे खेतों, उसमे काम करने वाले किसान,  छोटे-छोटे नालो से बहते हुए बारीस के पानी जो खेतो को सींचते है हम उसे अपने नज़रों से खो देंगे और ये सब देखने से हम वंचित रह जायेंगे | हमें यहीं ये सब देखने को मिलेगा इसलिए हमें बिना अनदेखा किये हुए आस-पास के वातावरण को निहारते हुए धीरे धीरे चलते रहना है | हमें ये भी तो नहीं पता की कब किसकी नजर लग जाये इस जगह या इलाके को और देखते ही देखते ये प्रकृत के खूबसूरत नज़ारे लुप्त हो जाये या लुप्त कर दिए जाएँ.
पुरे २५ से ३० किलोमीटर तक हमें ऐसा ही दृश्य देखने को मिलता है

सड़क छोटे छोटे गावों से होकर गुजरता है जहा अनेक प्रकार की खूबसूरती जैसे पहाड़ो से होकर निलती हुई सड़क और उसमे हरे हरे घासों से सनी हुए मैदान, दूर दराज़ में मिटटी और ईंट से बने छोटे छोटे घर मानो ऐसा लग रहा है की हम हमारे शहर से थोड़े दूर पर नहीं कही पहाड़ पर बसे जगह पर आ गए है | यह सुंदरता अपने आप में महान और अविश्वसनीय है | वर्षा ऋतू के अगस्त महीने में हम यहाँ आये है. ऊँचे ऊँचे पहाड़ों पर बसे छोटे छोटे गाँवो जहा पर कोई भी आधुनिक सुविधाएं नहीं है जैसे पेट्रोल पंप, एटीएम जैसी सुविधाएँ जो की ५०-६०-७० किलोमीटर तक नहीं है फिर भी वहां के लोग खुस है और स्वस्थ है और हम जिनके पास सब कुछ होते हुए भी कभी इतना खुस नहीं रह पाते है.

हम वहा पहुंचने के बाद हमें दूर दूर तक कोई भी पहचान नहीं मिल रहा था की कैसे दहेल झरने तक जाएँ फिर हम एक दुकान वाले से जानकारी ली की दहेल झरना कहाँ है और उस तक कैसे पहुँचाना है तो उसने बताया की यही पर है लेकिन उसके लिए आपको अपना मोटरसाइकिल को यही पर रख कर थोड़ी दूर तक पैदल जाना पड़ेगा फिर भी थोड़ी आपको परेशानी हो सकती है इसलिए सुझाव है की आप यहीं गाव के किसी लड़के को लेकर जाएँ तो वो आपको आपको अच्छे से दिखा लाएगा और आप अपने खुसी से जो भी उसे देना होगा दे दीजियेगा. हम बड़े खुस हुए और फिर हमने अपनी मोटरसाइकिल को वही पर रखा और उन लड़को के साथ चल पड़े.
थोड़ी दूर लगभग 1000 कदम चलने बाद गांव के लड़के ने बताया की अब हमें ध्यान से निचे की तरफ उतरना ह. यहाँ कोई भी आदमी के द्वारा बनाया हुआ सुविधा नहीं है सब प्राकृत के द्वारा बनाया हुआ है और उसी में कुछ रहना पड़ेग. अब जैसे जैसे हम आगे बढ़ रहे थे झरने के समीप पहुंचते जा रहे थे वहां से आती हुई पानी की कलकलाती हुई आवाज़ हमारे कानो को अत्यधिक प्रेरित कर रहा था और हम अधिक उत्सुक होते जा रहे थे हमें निचे उतरने में थोड़ा मुश्किल तो हो रहा था लेकिन हमें झरने को देखने की उत्सुकता भी थी इसलिए सम्हल-सम्हल कर निचे उतर रहे थे लगभग ३०-४५ मिनट के बाद एक ऐसी जगह पर पहुंचते है जहाँ पर दो झरने दिखाई पड़ते है. झरनो से निकलने वाले पानी और उसका बहाव बहुत ही ज्यादा था और उनके दहाड़ जैसे आवाज को सुन कर मन गदगद हुआ जा रहा था.
दाहिने तरफ स्थित झरने की तरफ हम उसके निचे तले तक जा सकते लेकिन बाएं तरफ स्थित झरने का आनंद हमे यही से उठाना पड़ेगा. यह दोनों झरनो का मिलन स्थान है जहां दोनों झरनो का पानी आकर मिलता है.

दाहिने तरफ स्थित झरने तक जाने के लिए भी हमें कठिन परिश्रम करना पड़ा बहुत आसान नहीं है  लेकिन वहा तक पहुंचने के बाद अविश्वसनीय चित्र सामने आता है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते है और ये हमें पिछले जितने भी कस्ट उठाये है यहाँ तक आने के लिए वो सब भुला देता है वहां  पर खड़े खड़े हमे यह प्रतीत होता हे की हम यह सब सही में अपने आँखों से ही देख रहे है या सपने में है. हमारे शरीर से लगभग ५० गुना ऊँचे चोटी से गिरता हुआ पानी और उससे निकलने वाली छोटी-छोटी पानी बुँदे फुहारों के रूप में जब हमें छु कर जाती हे तो ऐसा प्रतीत होता है के लोग क्यों झूठ कहते है  के धरती पर स्वर्ग नहीं है अरे कभी कहीं जा कर तो देखे और उसे एहसास कर के तो देखें . इस जगह पर बिताया हुआ एक-एक पल अब आंखे बंद करने के बाद फिर से शुरू हो जाता है और मुखड़े पर एक मुस्कान सी आ जाती है, सबसे अच्छी बात जहा पर झरने का पानी गिरता है  वहा प्राकृत के द्वारा बनाया गया एक चबूतरा है जिस पर हमे बस ठहरना है बाकी झरने से निकलता हुआ पानी हमें हर पल छु कर और दुनिया की सबसे खूबसूरत एहसास दे कर जाता है. में लगभग आधे घंटे तक वह ठहरने और झरने का लुफ्त उठाने के बाद वापसी शुरू कर दी और फिर अपने उस स्थान पर पहुंचा जहा दोनों झरनो का पानी मिलता है.
बायीं तरफ स्थित झरने का मजा हम यहीं उठा सकते है क्यूकि साथ आये गांव के लड़के ने बताया की उस झरने का पानी गिरने वाले जगह पर कोई जाता नहीं है और वहां नहीं जा सकते. उसकी बातो को सुन कर कर और वहा के वातावरण और उस झरने से आने वाले पानी की रफ़्तार की आवाज़ को सुनकर ही ऐसा प्रतीत हो रहा था इस झरने के नजदीक तक नहीं जा सकते है. इसका लुफ्त तो हम यही से ही उठा सकते हे लेकिन सावधानी से क्युकी इसके पानी का वेग इतना ज्यादा था की पानी के बहाव से ही पता चल जाता था और हमने तलाशा भी किया निचली स्तर पर जो पानी गिर रहा था वहां पर उसके निचे हम जाकर नाहाना चाहे लेकिन ६० सेकंड भी नहीं रुक पाए पानी की बहाव हमें आगे की तरफ धकेल देता था फिर हम जहां बहाव कम था वही पर नहाने का आनंद लिया उसके बाद धीरे धीरे वापस ऊपर की तरफ चढ़ाना शुरू कर दिया.

प्रकृत भी हमारे पक्ष में था हर आधे घंटे में मौसम बदल रहा था कभी धूप कभी बारिश और कभी कोहरा जैसा हो रहा था. हमने बहुत ज्यादा आनंद उठाया जो ऐसा लगता है की इस लेख में 10% भी बयां नहीं कर पाए.




गांव से लिया हुआ दृश्य


ये हमारे छोटे छोटे सहायक जिनके बिना हम सायद ये सुंदरता को नहीं निहार पाते



सबसे अच्छी बात हमें यहाँ पर किसी भी प्रकार का प्लास्टिक या कचरा देखने को नहीं मिला यह अपने आप में सबसे बड़ी उपलब्धि है और भगवन करे लोग यहाँ इस प्राकृत के सुंदरता को बनाये रखे और यह दृश्य हमेशा बनी रहे.


गाडी चलते समय हमेशा हेलमेट पहने.
गरीबो को सहायता करें .
सीट बेल्ट का उपयोग करे अगर आप कार चला रहे हों.
प्लास्टिक से नफरत करे.
जय भारत : जय हिंदुस्तान | जय हो धरती माता | जय हो प्रकृत महराज