Wednesday, 29 May 2019

LADAKH BIKE TRIP

लेह-लदाख - एक मोटरसाइकिल यात्रा

मैं लदाख को अपने अंदाज में कुछ इस तरह से कहूंगा... 

"किसी से प्रेम करने के बाद वो कितना वफादार होगा और तुम्हे कितना प्रेम करेगा इसकी कोई ज़मानता नहीं है लेकिन एक बार लदाख घूमने के बाद इसकी ज़मानता तो है की वहां का एहसास, खूबसूरती, यादें मरते दम तक आपके पास रहेंगी." 


लदाख भारत का वो हिस्सा है जिसकी खूबसूरती का डंका अनेको देशो में प्रचलित है जो अपने आप में निहायत ही खूबसूरत और प्रकृत के तमाम सज्जो साज से लदा हुआ है. जिसे हम अपने रोजिंदा के रहन सहन नहीं मिलता है जिसपे निगाहें टकटकी लगा लेती है और मन वहीं का हो के रह जाता है भले कितना भी कोशिश करे लेकिन मन हर पल लदाख को ही ढूंढता है,
यात्रा से पहले की तैयारियां 
1. हमने एंड्रॉइड मोबाइल और एप्पल फ़ोन दोनों में गूगल मैप जम्मू & कश्मीर का ऑफलाइन डाउनलोड कर के रखे थे जिसमे से एप्पल का फ़ोन नाकाम रहा रस्ते बताने में लेकिन एंड्राइड के फ़ोन में ऑफलाइन मैप अच्छे तरह से चला जो रस्ते ढूंढने में बहुत सहायता किया. केवल बीएसएनएल का पोस्टपेड ही एक ऐसा नेटवर्क है जो कहीं-कहीं अपना सेवा प्रदान कर देता था बाकी तो सब मोह माया जैसा ही लगता है. जिओ का नेटवर्क लेह में मिला था उसके बाद सीधे हमें मनाली में प्रदान हुआ. तो लदाख के लिए बीएसएनएल का पोस्टपेड कनेक्शन जिंदाबाद.

2. पोशाक : कपड़ो में लचीले कपड़े ही बेहद आरामदायक और असरदारक साबित हुए जो हमें घूमने-फिरने से लेकर मोटरसाइकिल चलाने तक में आराम और आनंद का अनुभव करा रहे थे. श्रीनगर के बाद से ठंढी इतनी रहती है वहाँ पर पुरे दिन की १० बजे के बाद से शाम को चार बजे तक ज्यादा महसूस नहीं होती है सूरज दादा की वजह से लेकिन जैसे ही सूरज दादा ने ऊष्मा को कम करना शुरू किया वैसे ही हमें कातिल ठंढी महसूस होने लगती है और हम न चाहते हुए भी रात को बिस्तर में पुरे पोशाक के साथ आराम फरमा रहे होते है बिना किसी हिचकिचाहट के.
हमने प्रत्येक व्यक्ति २ जींस  के पैंट ३ टी शर्ट ले गए थे साथ में लिए थे जो उपयुक्त थे लदाख सफर के लिए क्युकी हमारे शरीर यात्रा करते समय जैकेट और ऊपर से रैनकोट से ढके रहते थे जिससे कपडे गंदे होने का सवाल पैदा नहीं होता था. हां पैंट गंदे हो जाते थे क्युकी जगह जगह सड़क पर पानी बहने के कारन उसको पार करते समेत मोटरसाइकिल से उड़ने वाला गन्दा पानी पैंट के निचले हिस्सों को भिगो और मटमैला कर देता थे. इसलिए कुछ भी हो या ना हो रैनकोट हमारे लिए सबसे अच्छा प्रवर्धक था हवा आवर पानी को रोकने के लिए इसके बिना हम  बारिस से नहीं बचेंगे और अगर तड़के सुबह में यात्रा शुरू करते थे तो ठंढी हवा से भी बच जाते थे जो चाहे आप कितना भी अच्छे ऊनी कपडे क्यू न पहन ले हम लेकिन भाई लदाख है कोई मज़ाक नहीं और हमारे  कपडे भी गंदे न होने की गॅरंटी रैनकोट ले लेता था. जिसके वजह से बार बार हमें कपडे बदलने और ज्यादा कपडे ले जाने की जरूरत नहीं पड़ी.

3. "Snickers Peanut Filled Chocolate" चॉकलेट्स एक ऐसा पदार्थ था जिसे हम कहीं भी और कभी भी अपनी भूख मिटाने और शरीर में उतनी ही ऊर्जा उत्त्पन्न करने के लिए उपयोग करते थे क्युकि पेट भर खाना खाने के बाद पचने में बहुत दिक्कत होती थी कम ऑक्सीजन होने की वजह से और काम खाना खाये तो भूख जल्दी लग जाती थी इसलिए यह हमारा सबसे अच्छा सफर का साथी था. *दर्द की दवा,  *बुखार की दवा,  *एसिडिटी की दवा,   *चोट लगने उपयोग होने वाला मलहम और पट्टी,    *ऑक्सीजन की एक ६लीटर बोतल.
* Diamox(१२५ या २५० मग यह गोली हमें उच्चतप पर जहा साँस लेने में परेशानी हो रही हो वहा हमारी धड़कन को जल्दी जल्दी धड़कने में मदद करता है ताकि हमें थोड़ा ज़्यदा ऑक्सीजन मिले और हम बीमार न पड़े.).
* Tang एकमात्र पदार्थ जो धुप में रामबाण जैसा काम करता है हमारे शरीर में पानी का स्तर को बरक़रार   रखता था हमने १किलो TANG पुरे रास्ते भर में खत्म कर दिया था यह हमें न सिर्फ लदाख में बल्कि हम जहा से आ रहे थे लदाख और लदाख से अपने घर के लिए यात्रा के समय शरीर में ऊर्जा उत्त्पन्न करने में बड़ा ही लाभदायक रहा.


4. सैडल बैग और कैरियर में सैडल बैग सबसे अच्छा विकल्प निकला हमारे हिसाब से एक तो हम इसमें  ज्यादा से ज्यादा सामान आसानी से रख सकते थे बिना अगल से किसी बैग में रखे और आसानी से कही उठा कर ले जा भी सकते थे. हमारी मोटरसाइकिल 1-२ बार  फिसल भी गयी थी इस समय यह बैग की वजह से हम सुरक्षित भू रहे और बैग को भी कुछ नहीं हुआ क्युकि यह कठोर सामान से नहीं बना थे तो टूटने का मौका ही नहीं मिला इसलिए हमारे हिसाब से सैडल बैग सबसे सुरक्षित और सबसे अच्छा विकल्प है जबकि कैरियर में हमें पहले सामान को किसमे रखना है उसके लिए अलग से बैग और  अगर गाडी रस्ते में फिसली तो लोहे का बना कैरियर बेशक टूट जाता या मुड़ जाता और यह हमें  परेशानी में फंसा देता की अब सामान कहा रखे और इसको जोड़े या ठीक कैसे करे. कैरियर में सायद पीछे बैठने वाला उतना आराम से नहीं बैठ पाता जितना सैडल बैग वाले माहौल में और इस सब सब दिक्कतों का सामना करना पड़े तो इतने लम्बे सफर में अगर ठीक से बैठना नहीं बना तो तो यात्रा का आनंद बेशक नहीं ले पाते.

5. पंक्चर से बचने के लिए मेरी थंडरबर्ड में मैने अलोए व्हील और टुबेलेस टायर लदाख यात्रा से ३ दिन पहले ही लगवा लिया थे (जिसने बड़े ही कारनामे दिखाए लदाख में अच्छे से फिटिंग नहीं होने की वजह से मेरे पिछले पहिये सभी के सभी बोल्ट ढीले हो गए थे, कुछ समय बाद तो २ बोल्ट कहा गिर गए पता ही नहीं चला इसको ठीक करने के लिए बहुत परेशान हुए लेकिन कोई समाधान नहीं मिला फिर राम भरोशे छोड़कर लदाख को घूमा और लौटते समय मनाली में खुले नए रॉयल एनफील्ड के शोरूम में ठीक कराई जहा सभी के सभी बोल्ट नए डलवाये, काश मैं अगर १ या २ महीने पहले ये सब कराया होता मेरे बाइक में तो सायद यह परेशानी हमें लदाख में नहीं झेलनी पड़ती) और मेरे भाई के बाइक में तो पहले से ही था इसलिए पंक्चर की चिंता थी नहीं ज्यादा लेकिन फिर भी पंक्चर किट और हवा का पंप हमने रखी थी जो हमें बहुत ही काम आया, हनले में मेरे भाई के बाइक में ४ पंक्चर मिले जिसे हमने खुद ही ठीक किया पंक्चर किट की मदद से और हवा भरने के लिए पंप भी ले गए थे तो कोई चिंता नहीं थी जब भी लगे हवा एक बार चेक कर लेते थे और भर देते थे. रिंच, पाना, पक्कड़, स्क्रूड्राइवर.... और भी बहुत कुछ साथ में रखा था क्यूकी अंजान इलाका कब कहा कौन सी चीज काम में आ जाये, एक बार थंडरबर्ड का साइलेंसर ढीला हो कर गिर गया इस समय ये टूल्स काम आये.
6. चैन स्प्रे हम 400ml का ले गए थे लेकिन लेह पहुंचने के बाद ख़तम हो गया और अहम् यात्रा तो रह ही गया अभी बहुत कोसिस करने के बाद 200ml का चैन स्प्रे मिल तो गया लेकिन जगह जगह पानी से गुजरने पर चैन पहले गिला होकर उसका पूरा आयल धुल जाता था और फिर हवा लगने के बाद सूख जाता था फिर आवाज़ आने लगता था चैन से लगभग हम कह सकते है के हर १००किलोमेटेर पर हमें चैन को आयल करने की ज़रुरत पड़ती थी मेने एक बार चैन ऑइलिंग करने का १००/- दिया है. फिर तो पेट्रोल पंप के वहां से आयल का छोटा पैक ले लिए और उसी से रस्ते भर काम चलाया.


7. हम जूते अच्छे वाले पहने थे लेकिंग जगह जगह पानी सड़क को पार करते हुए बह रहा था तो हमारे   जुटे जल्द ही गंदे और गीले जाते थे हर एक जगह से दूसरे जहा जाने में भी यही कहानी कितना भी सावधानी से चले क्यों ना फिर भी बच नहीं पाते थे, इसका सुझाव हमने ये निकला घर से निकलते समय हमने कुछ प्लास्टिक बैग्स हमने रख्खी थी हमारे पास ५ किलो वाली. अब पॉलीथिन को मोज़े पहनने के बाद पहन लेते थे और फिर उसके बाद जूते पहन लेते थे जो बहुत ही सहायक रहा, जिससे हमने पालीथीन के जरिये अपने पैर को गीला होने से बचा लिया.  सायद पानी न जाने वाला जुते रहे होते तो इस जुगाड़ को अपनाना नहीं पड़ता. हम भले ही जून जुलाई में ही गए थे वह लेकिंग पानी से कोई भी नहीं बच सकता और जूते गीले होने से भी.   * मोटरसाइकिल के स्पार्क प्लग    * क्लच वायर        * ब्रेक वायर      *चैन स्प्रे(IMP)     * रब्बर की कांटे वाली रस्सी,           * १०लीटर का डब्बा(पेट्रोल के लिए)                     * डिब्बे को बांधने के लिए अच्छी रस्सी या नायलोन की रस्सी


यात्रा प्रबंध
यह मोटरसाइकिल यात्रा जो मेरे और ऐसा भी कह सकते है हर एक राइडर के जीवन का लक्ष्य होता है "मोटरसाइकिल के द्वारा लदाख यात्रा" मेरे लिए यह किसी सपने से कम नहीं था लेकिन कुछ कशिश बाकी रह गयी है उसे हम अपने आने वाले दूसरे लदाख यात्रा में पूरा करने की जरूर कोशिश करेंगे और वो आने वाला दूसरा लदाख यात्रा पता नहीं कब पूरा होगा. ये बाते तो सिर्फ दिल को अच्छा लगे इसलिए कर लेता हु. इस यात्रा ने हमें बहुत कुछ सीखा गया, दिखा गया और बता गया जो बेमिसाल, अविश्वसनीय, अद्भुत जिसे किसी भी शब्दों में बयां करे बस मानो कुछ कमी सा ही लगता है और फिर एहसास होता है की लदाख को शब्दों में तो बयां नहीं कर सकते है
पिछले ३ सालों से योजना बन रही थी जो इस साल 2019 जून के आखिरी सप्ताह और जुलाई के पहले सप्ताह में हमने पूरा कर लिया. ये यात्रा सिर्फ ६ दिनों का था जो की बहुत ही कम माना जाता है अगर लदाख का नाम आता है लेकिन छुट्टियां कम होने की वजह से इसी थोड़े दिनों में जितना भी हो सकता था उतनी खुशियां बटोरने की कोशिश रही और बहुत ही आनंदमय सफर था.
यह यात्रा दो नव युगल मैं और मेरे भाई मिलकर ४ लोग २ बाइक (मेरी रॉयल एनफील्ड और मेरे भाई की यामाहा FZ 2.0) तन, मन और धन से तैयार हो कर इस यात्रा का शुभारंभ किया.गूगल बाबा की मदद से हमने वहां पर उपयोग आने वाले हर एक सामान का उत्तम व्यस्था कर लिया था.

श्रीनगर से लेह से मनाली मोटरसाइकिल यात्रा में हमने थोड़ी जल्दबाजी दिखाई जल्दी पहुँचाना है जल्दी से सब कुछ देख लेना है और ६ दिनों में वापस भी आ जाना है नतीजा यह सिर्फ मजाक में ही अच्छा लगता है बाकी सच्चाई यह है की १ महीना भी कम पड़ता है लदाख की खूबसूरती निहारने के लिए, लदाख है ही इतना खूबसूरत, हमने हड़बड़ाहट-हड़बड़ाहट में बहुत कुछ खो दिया नहीं देख पाए जो देख सकते थे यह सिर्फ अनुभव की कमी और लदाख को चूमना है बस इसी उत्साह ने हमें गुमराह कर दिया था. शुरुआत में सोनमार्ग की खूबसूरती को सिर्फ निहार ही पाए एहसास नहीं कर सके करे, यहाँ की  खूबसूरती ही ऐसी थी जो हमने सिर्फ तस्वीरों या चलचित्रो में देखा था कुछ तस्वीरें ही है वह के जो उसकी खूबसूरती को भलीभांति बयां करते है और लुभाते रहते है , आगे ज़ोजिला का लुत्फ़ हमने अच्छी तरह से उठाया लेकिन Dras की खूबसूरती और "कारगिल वॉर मेमोरियल" को हम नहीं देखे इस चक्कर में की लेह जल्दी पहुँचाना है, आगे कारगिल में कुछ ख़ास नहीं लगा तो हम लेह के लिए निकले लेकिन कारगिल और लेह के बीच में "Mulbekh", "Lamayuru" भी बहुत खूबसूरत जगह है जिसे हमने अनदेखा नहीं करना चाहिए था.  पत्त्थर साहिब गुरुद्वारा में हमने मन भर खूब लुत्फ़ उठाये, प्रसाद भी पाए आगे मैगनेटिक हिल पर उसके आकर्षण का लुत्फ़ लिया और लेह पहुँच गए, लेह में बाइक सर्विस के चक्कर में रात हो गयी और लेह चौराहे का ही लुत्फ़ उठा पाए आस पास की खूबसूरती को नहीं निहार पाए. लदाख से आने के बाद अब जा के हमें एहसास हुआ की हमें इस यात्रा को और भी आराम से आनंद उठाते हुए फोटोग्राफी करते हुए पूरा करना चाहिए था यह गलती हमने किया है और अब हम जब भी लदाख को याद करते है हमारे आँखों के सामने वहां की खूबसूरती इर्द गिर्द घूमती नजर आती है और अफ़सोस होता है की यहाँ भी घूम लिए होते वहां भी घूम लिए होते तो कितना अच्छा होता. 


निचे दिए गए खर्चे का विवरण हम कुल ४ लोगो और २ बाइक का लगभग है और अक्शर निर्धारित करता है की हमें क्या सहूलियत चाहिए. और हमारा अगला लदाख यात्रा अच्छा और काम खर्चे वाला होगा क्युकी इस यात्रा में पता चल गया की क्या कहा कब कैसे कितना खर्चा कर सकते है और कितना लुफ्त उठा सकते है. राइडर्स की एक सोच ये होती है की हम प्रकृत को कितने नज़दीक से देख ले ये नहीं की वह जा कर हमें कितने खर्चे किये.
लदाख में हमने टोटल खर्चा लगभग ८० हजार का हुआ जिसमे हम अपने गांव भी हो आये. यात्रा हमने शुरू की थी वड़ोदरा से गोरखपुर से लदाख श्रीनगर होते हुए और वापसी मनाली होते हुए वड़ोदरा तक.

पेट्रोल खर्चा
टोटल पेट्रोल खर्चा लगभग 25000/- जिसमे मेरी थंडरबर्ड 350(एवरेज 38-40, 14000/-) और यामाहा fz2.0(एवरेज 45-50, 11000/-). पुरे 7000 किलोमीटर की दूरी वड़ोदरा से वड़ोदरा. 

होटल का खर्चा 
१ स्टॉप शिवपुरी MP 1200/-  २ कमरे के लिए (७२२ किलोमीटर की दूरी वड़ोदरा से)
                                                 (685 किलोमीटर की दूरी शिवपुरी से गोरखपुर तक )
२ स्टॉप आगरा UP 1000/-  २ कमरे के लिए ( 605 किलोमीटर गोरखपुर से आगरा)
३ स्टॉप लुधियाना 1000/-  २ कमरे के लिए (530 किलोमीटर की दूरी आगरा से)
४ स्टॉप श्रीनगर  800/-  २ कमरे के लिए (हाउसबोट डलझील) (५०२ किलोमीटर की दूरी लुधियाना से)
5 स्टॉप फोटू ला    500/- 1 बड़े कमरे के लिए ( 300  किलोमीटर की दूरी श्रीनगर से )
6 स्टॉप लेह  1500/-  २ कमरे के लिए (130 किलोमीटर की दूरी फटु ला से)
७ स्टॉप डिस्किट 1200/-  २ कमरे के लिए (120 किलोमीटर की दूरी लेह से )
८ स्टॉप पांगोंग 800/-   २ टेंट के लिए  (230  किलोमीटर की दूरी डिस्किट से )
9 स्टॉप हनले 1800/-  २ कमरे के लिए (रात का खाना और सुनह का भरपूर नास्ता) (320 किलोमीटर की दूरी पांगोंग से)
10 स्टॉप उपसी  1000/-   २ कमरे के लिए (340 किलोमीटर की दूरी हनले से त्सो मोरिरि होते हुए उसपी )
11 स्टॉप सरचू  900/- २ कमरे के लिए ( 230किलोमीटर की दूरी उपसी से )
12 स्टॉप मनाली 1200/-  २ कमरे के लिए (230किलोमीटर की दूरी सरचू से मनाली तक)
13 स्टॉप सोनीपत 2000/- २ कमरे के लिए (500किलोमीटर की दूरी मनाली से)
14 स्टॉप दाहोद 1200/- २ कमरे के लिए (920 किलोमीटर की दूरी सोनीपत से (यह हमारा हमरी जीवन का सबसे लम्बी यात्रा एक दिन पूरी की हुई जो सायद ही कभी ना टूटे) फिर दाहोद से वड़ोदरा 160 किलोमीटर)
टोटल ६५०० किलोमीटर की दूरी शुरू से अंत तक और ५००+ किलोमीटर इधर उधर घूमने में खर्च हुए
1200 +1000+ 1000+ 800 +500+ 1500+ 1200+ 800+ 1800+ 1000+ 900+ 1200+ 2000+ 1200=16100/-

खाने पिने का खर्चा अपने ऊपर निर्धारित है हमने कैसे किया निचे विवरण है 
1. वड़ोदरा से शिवपुरी तक का खाने का खर्चा लगभग 900/- रहा जिसमे रस्ते में हमने 350 /- का दोपहर का भोजन किया था और रात को 350/- रात का भोजन और चाय पानी का लगभग 200/- 

2. शिवपुरी तक का खाने का खर्चा लगभग 900/- रहा जिसमे रस्ते में हमने 350 /- का दोपहर का भोजन किया था और रात को 350/- रात का भोजन और चाय पानी का लगभग 200/- 



इनर लाइन परमिट का टोटल खर्चा ७५०/-  प्रति व्यक्ति = 3000/-

 २ नंग सैडल बैग २ बाइक के लिए 850/-  प्रति बैग  =  1700/-

 २ जोड़ी knee and elbow सुरक्षक 1050/- प्रति जोड़ी  = 2100/-

१ लीटर पूरा सिंथेटिक sell ऑयल यामाहा fz  २.0 के लिए   =  950 /- 
२.५ लीटर पूरा सिंथेटिक sell ऑयल थंडरबर्ड ३५० के लिए  = 2100 /-
 




 यात्रा विवरण 
पहला दिन : लदाख यात्रा हमारी शुरू होती है वड़ोदरा से वड़ोदरा तक लेकिन इसी बीच हमारे गांव यानी गोरखपुर में एक शादी सामारोह में भी शामिल होना था जो अत्यंत आवश्यक था, इसलिए हम २२ जून शनिवार सुबह ५ बजे वड़ोदरा गुजरात से शिवपुरी मध्य प्रदेश(६१० किलोमीटर) अपनी मोटरसाइकिल पर सवार हो कर निकल पड़े रात शिवपुरी में रुके. वड़ोदरा से शिवपुरी के रास्ते कही एकल सड़क और तो कही दोहरा सड़क और कभी कभी तो  गाँवों के बीच से गुजरते हुए आखिरकार समय रहते, दिन डूबने से पहले पहुँच गए बस ये सब गूगल बाबा की कृपा थी बोलो गूगल बाबा की जय.

दूसरा दिन : सुबह रविवार २३ जून ६९० किलोमीटर का सफर शिवपुरी से गोरखपुर उत्तर प्रदेश के लिए, जो शाम को हमने तय कर लिया बड़े आराम से. लेकिन गोरखपुर पहुंचते पहुंचते करीब ८ बज गए, हमने बस्ती शहर को बरसात में भीगते हुए पार किया ऐसा कह सकते है इस साल की ये हमारी पहली बारिस और इसमें हम खूब भीगे और मोटरसाइकिल बरसात में चलाने का भी लुफ्त उठाया जो आनंददायक था और एक सीख थी हमारी यात्रा के लिए.

यह दो दिनों का सफर हमारे लिए प्रेक्टिस मैच के जैसा रहा इससे हमने बहुत कुछ सीखा जो हमें लदाख यात्रा में काफी सहयोग हुआ जैसे बारिस में कैसे खुद , सामान और मोटरसाइकिल को सुरक्षित रखना है

२4 जून और २५ जून को शादी समारोह में उपस्थिती देकर हम २६ जून को सुबह में बारात बिदाई के तुरंत बाद निकलना था लेकिन ऊपर वाले की मंजूरी नहीं थी देखते ही देखते सुबह ७ बजे के करीब जोरो से आंधी तूफान और उसके बाद बारिस ने हमें दोपहर १२ बजे तक रोक रखा उसके बाद जैसे ही बारिस थोड़ी शांत हुई हम यहाँ से निकल पड़े हमारे स्वप्न यात्रा पर और यह उम्मीद कर रहे थे की 10-११ बजे तक आगरा पहुँच जायेंगे लेकिन ६१० किलोमीटर का सफर तय करते करते रात के १२:३० हो गए. इस सफर के दौरान हमने ताज एक्सप्रेसवे पर मोटरसाइकिल चलाने का लुफ्त उठाया जो की हमारे दिलों  कभी भी न भूलने वाला एक यादगार छाप छोड़ गया.
ताज एक्सप्रेसवे पर मोटरसाइकिल को भी अनुमति है चलाने की लेकिन टोल टैक्स देने के बाद. लखनऊ से आगरा ३०१ किलोमीटर के सफर में महसूस ही नहीं हुआ के हमने कब ब्रेक लगाया था और कब गियर बदला था. लगातार हमारी मोटरसाइकिल १००-११० की झड़प से चल रही थी जो हमें आगरा पहुंचने में मदद किया.


पांचवा दिन : २७ जून सुबह ६ बजे हम आधी नींद से उठे तैयार होकर निकल पड़े अमृतसर के लिए ६९० किलोमीटर दूर था, राजधानी दिल्ली उपमार्ग में भारी यातायात की वजह से हम रफ़्तार को नहीं बरक़रार रख सके जिससे हम अगले ठिकाने तक दिमाग में रखे हुए समय पर नहीं पहुँच पाने पर जालंधर में रुकने का तय किया, अब हिम्मत भी साथ नहीं दे रही थी ऊपर से गर्मी और पिछले ३ दिनों से अच्छे से सोये भी नहीं थे तो हमने तय किया की हम आज यही रुकेंगे कल सीधे अमृतसर न जाकर श्रीनगर के लिए रवाना होंगे.
छठा दिन : सुबह २८ जून लगभग ५:३० बजे हम श्रीनगर के लिए रवाना हो गए जो यहाँ से लगभग ४५० किलोमीटर की दूरी पर है. लेकिन एकल सड़क होने की वजह से हमें शाम को ६:३० हो गया.
श्रीनगर में हम नौका घर में रहे थे, ये भी जिंदगी का एक अच्छा अनुभव रहा. यहाँ पर जगहों का अभाव होने की वजह से हमारे मोटरसाइकिल रखने के लिए १५० रूपये एक रात के लिए देना पड़ा. जगह जगह भुगतान पार्किंग बना रखा है. पठानकोट से आगे बढ़ने के बाद हमें ठंढी महसूस होने लगी दिन में भी, मौसम खुला हुआ था लेकिन पहाड़ो से गुजरते रोड एक अच्छा एहसास दे जा रहे थे. कभी पहाड़ो पर से होकर गुजरना होता था कभी पहाड़ो से निचे की तरफ उतरने की बारी आती थी ऐसे रोड पर मोटरसाइकिल चलते समय बस बचपन के साप सीढ़ी खेल की भाती प्रतीत हो रहा था.


कुछ जगहों पर सड़क कार्य प्रगति होने से रफ़्तार थोड़ी कम ही रखनी पड़ती थी और रोड पहाड़ी किनारो से होकर गुजरते थे तो अक्सर रफ़्तार सयंम कर के ही चलना समझदारी लगता था. लगभग पठानकोट से  १७५ किलोमीटर और  जालंधर से २९० किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद हम एक ऐसे जगह पर पहुंचे जिसके बारे में बहुत सुना था टेलीविज़न में और अखबारों में वो था भारत का सबसे बड़ा १० किलोमीटर लम्बा सुरंग "चेनानी-नश्री-सुरंग" 
चेनानी-नश्री-सुरंग प्रवेश

चेनानी-नश्री-सुरंग

यह उधमपुर से सिर्फ ३२ किलोमीटर की दूरी पर है. सुरंग पार करने के बाद हमने भोजन करने का निश्चय किया आगे बढे ही थे लगभग ५०० कदम पर बसे शर्मा राजमा चावल और पहाड़ी देशी घी पर टूट पड़े जैसे कभी खाया ही ना हो क्यों नहीं कुछ थे ही ऐसा उनके राजमा चावल घी में जो हम दबा कर खाये जिसका स्वाद अभी भी हम एहसास करते है



फिर हम आगे बढ़ते रहे सुरक्षा की वजह से यह इलाका सबसे ज्यादा हमारे जवानो से घिरा हुआ था हर ५०० कदम पर एक जवान दिखता था उन्हें देख कर इतना एहसास तो हो गया की वो जो करते है हम अपने पुरे जीवन भर उनके किये हुए कार्यो का २०-३० प्रतिशत भी नहीं करते होंगे. पुरे दिन निगाहे जमा कर आतंकवादियों को पकड़ना या भागना, आने जाने वालो को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो उसके लिए तैयार रहना, कोई भी मौसम हो कोई भी पहर हो उन्हें सिर्फ सुरक्षा में तत्पर रहना. अरे नमन करता हूँ उस माँ को जिसने ऐसे सपूत को जन्म दिया, ये ही हमारे असली नायक है  इनपे हमें नाज है जय हिन्द जय जवान.
 ये हमारे नायक जिनके जिनपे पूरा भारत गर्व करता है
रोड के बगल से बहने वाली नदी में आने वाला पानी पहाड़ो से पिघले हुए बर्फ से और पानी का बहाव बहुत ही तेज था उतना ही ठंढा भी. ये भी एक प्राकृत का अनोखा रूप दिखा, इन पहाड़ो से बर्फ पिघल कर बन रहे छोटे छोटे झरने आने जाने वालो के लिए तो प्राकृत द्वारा निर्मित पानी का श्रोत 
बन गए थे यह पानी एकदम पिने योग्य है लोग नहाते भी देखे गए पानी पीते 
 भी देखे गए.
आगे चलते गए धीरे-धीरे शाम हो रहा था, एक जगह मेरी मोटरसाइकिल ने अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया पेट्रोल फुल होने के बाद भी बंद हुए जा रही थी, थोड़ी देर खड़ी रखने के बाद फिर चालू होता जाता था लेकिन अब तो हर १ किलोमीटर जैसा चलने के बाद बंद हो जाता था, सायद चिंगारी न निकलने की परेशानी थी. यहाँ पर चारो-ओर चार पहियों के मिस्त्री और दुकाने दिख रही थी लेकिन दो पहिये वाहन बनाने की दुकान एक भी नहीं दिख रही थी तभी हमारी मोटरसाइकिल एक जगह पर रुकी जो एक छोटे से चौराहे जैसा दिख रहा था और वहा पर पर सेना की टुकड़ी भी थी मैं मोटरसाइकिल को बनवाने के लिए मिस्त्री के पास ले गया बाकी मेरे साथ के लोग सेना की टुकड़ी के पास खड़े थे और उनसे धीरे धीरे बातें करने लगे और क्यों नहीं वो देश के नायक थे कोण नहीं चाहेगा की उन वीर सपूतों से मिलना, बात होने लगी कहा से आये है कहा जा रहे है इत्यादि. मिस्त्री के बारे में भी पूछा तो उन्होंने बताया मिस्त्री यहाँ पर है और आगे एक चौराहा आएगा वहा पर मिल जायेगा, और फिर एक सेना के जवान से बताई गयी बाते हमें श्रीनगर तक जान हलक में लेकर जाने पर मजबूर कर दिया था. उसने हमसे हमारे भेष-भूषा को देखकर पूछा आप सेना में हो, हमने कहा नहीं, तो ये सेना के जैसा  पायजामा, जूता, थैला आदि क्यों पहन रखा है आपको पता है आगे अनंतनाग आने वाला है वहा आये दिन कुछ न कुछ धमाल होता रहता है हो सके तो ये सब बदल लो सुरक्षा से हिसाब से अभी २ दिन पहले ही एक सेना के जवान के साथ मार -पीट हुई है जिसमे एक जवान घायल हुआ है. वहा  के लोगो को सेना और उनके जैसे पहनावे वालो से सख्त नफरत है पहले गोली मार देते है बाद में पूछेंगे की सेना से हो या आम आदमी, उनके कहने के हिसाब से हमसे जितना हो सका उतना हमने अपने पहनावों में  परिवर्तन किया और थैले को ओढ़नी से ढक कर आगे बढे मन में डर और उसपे ये मोटरसाइकिल ने तो नाक में दम कर रखा था और फिर थोड़ी दूर जा कर बंद हो गयी जो की आगे वाले चौराहे से २ किलोमीटर दूर था फिर हमने वहा के लोगो से पूछ ताछ की तो पता चला की २ किलोमीटर पीछे एक मिस्त्री है वहां चले जाइये, आगे तो ५० किलोमीटर तक कोई मिस्त्री या दुकान नहीं मिलेगा. फिर हम किसी तरह मोटरसाइकिल को ले कर वहा गए मिस्त्री मिला उसने ठीक करना शुरू किया, पिछली बातो को को सोच सोच कर सब डरे हुए थे ये इलाका भी पूरा मुस्लिम लोगों का दूर दूर तक वही लोग और सेना के जवान ही नजर आ रहे थे फिर भी डरा हुआ था क्यूकि हमारे साथ दो महिलाये भी थी. अचानक से एक २ तीन लोग आते हुए दिखाई देते है सभी मुस्लिम उसमे से एक बन्दे ने सफ़ेद रंग का कुरता पायजामा आवर सर पर टोपी पहने हुए आकर बाते करने लगा हमारे मोटरसाइकिल की नंबर प्लेट() देखकर पूछ गुजरात से हो हमने कहा हाँ फिर पूछ मोदी के गांव से हो हम मन कैसे करते कहना पड़ा हाँ फिर उसने मोदी को गलियां देनी सुरु कर दी उसे हम काट देंगे हम हमेसा कगन पहन कर चलते हे उसे नहीं पता की हम क्या चीज है एक बार आ कर तो देखे इधर उसे शरीर का एक एक कटरा भी नहीं मिलेगा ऐसा --- वैसा बहुत सारा बोला, अब हम आवर दर गए थे कभी दिल को तसल्ली होती के कुछ नहीं होगा चारो और सेना के जवान है कभी दिल घबरा जाता की अचानक से कुछ ये लोग करे कुछ तो अफरा-तफरी मच जाएगी हम चारो बिखर न जाये मन में बहुत सरे उटपटांग सवाल आने लगे, उच्च देर बाद मेरे से आवर मेरे भाई से साथ बात करने के बाद मेरी वाइफ से बाते करने लगा लेकिन उसे वो बहन बहन कर के बुलाता था तो थोड़ी  जान में जान आया फिर भी दर तो अभी भी लग रहा था, मिस्त्री ने अपना मोटरसाइकिल को बना के परीक्षण कर रहा था उसके बात वो हमसे निगाहें मिलाया जाने वो कह रहा हो की इसकी बातो को भूल जाये और आप यहाँ से जल्दी से जल्दी निकल जाये, फटाफट उसने हमारे बैग को बाइक में बांधना शुरू कर दिया बिना कहे मनो वो नहीं चाह रहा था की हम किसी परेशानी में फंसे फिर हमने पैसे का हिसाब किया लेकिन अभी भी हमको उस लड़ने ने अपनी बातों में फसा रखा था, अब बात ये थी की उस लड़के से कैसे उससे पीछा छुड़ाए, वो बार बार ये कह रहा था की में इधर ये कर दिया उधर वो कर दिया, हम ऐसे है हम वैसे है, लाख कोशिशों के बात हमने हाथ आगे बढ़ा कर उससे हाथ मिलायी ोउ ये कह कर की हमें देर होगी लम्बा रास्ता है हम निकालेंगे बड़ा अच्छा लगा आपसे मिलके ऐसा लगा मनो कोई अपना मिल गया हो, इतना सब होने के बाद उसने एक नया पैतरा निकला मेरा नंबर ले लीजिये फ़ोन करते रहिएगा रस्ते में कुछ भी परेशानी हो बताइयेगा, सिस्टर आप भी नंबर ले लीजिये....... हमने नंबर लिया फिर जा के वो हमे जाने दिया, यहाँ मिस्त्री ने हमें जाने को कहा और उस लड़के को भी जाने को कहा ये रुख मिस्त्री का ये बयां कर रहा था की "कुछ नवयुवक अक्शर हर एक इलाके में पाए जाते है जिन्हे ढकोशला करने का शौख ज्यादा होता है भले घर में खाने के दाने न हों ". ये भी लड़का कुछ उसी किसम का था. हम किसी तरह जान छुड़ाकर वहा से निकले अगली लड़ाई के लिए जो अनंतनाग को पार करना था. जैसे-जैसे अनंतनाग के नजदीक पहुंचते गए हमारी जान हलक से बहार निकलती गयी हमने सोच लिया था की कुछ भी हो जाये हम रुकेंगे नहीं जब तक वो इलाका पार न हो जाये. आवर सब कुछ ऊपर वाले की कृपा थी हम बिलकुल सेफ पार हो गए, एक बात नोटिस किया की अनंतनाग कसबे से होकर भी एक रास्ता जाता है और एक उपमार्ग भी है अक्शर मुख्य सड़क उपमार्ग से होकर निकलती है. आवर अनंतनाग कसबे से होकर जाने की जरूरत नहीं पड़ती है. अनंतनाग इलाका भले ही डरावना हो लेकिन उसकी खूबसूरती निहारते बनती है, हरे-हरे घासो से भरे मैदान चारो ओर बर्फ से लदे पहाड़ ऊपर नीला आसमान, उसमे तैर रहे सफ़ेद बदल मन को एकदम मोह लेते है.



अनंतनाग के गुजरते ही हमने राहत भरी साँस ली आवर अब श्रीनगर के कब आएगा वही राह देख रहे थे. यहाँ से लगभग ४५ -५० किलोमीटर ही था जो हमने आसानी से सूरज अस्त होने से पहले पहुंच गए. 
श्रीनगर शहर में यातायात बहुत हो की वजह से हमें डल तालाब पर पहुँचाने में वक्त लग गया जिसके वजह से हम श्रीनगर को घूमने से वंचित रह गए जो की सुना है बहुत खूबसूरत है. 
हमने पहले से ही नौका घर में अपना कमरा ले रखा था. अब बात मोटरसाइकिल रखने की तो डल तालाब के सामने भुगतान पार्किंग में हमने रखा आवर फिर शाकाहारी भोजन तलाशने में थोड़ा और वक़्त लग गया अब अँधेरा हो चूका था हम आराम करने के लिए छोटे से नाव में बैठे वो हमें कमरे की तरफ धीरे धीरे ले जा रहा था.अँधेरा हो जाने की वजह से पुरे तालाब में जुगुनू की तरह चमचमाती रोशनी पानी में पड़ते प्रतिबिम्ब काफी अच्छे और खूबसूरत लग रहे थे मनो किसी दूसरी दुनिया में आ गये हों. नौका के कमरे बड़े और अच्छे थे. मालिक ने हमें बताया की शौचालय को कैसे प्रयोग करना है बिना ज्यादा पानी फैलाये ये एक अलग सा सीख था हमारे लिए की हम पानी को इस तरह से भी बचा सकते है. 


अगली सुबह हम जल्दी जल्दी तैयार हुए क्युकी आज का लक्ष्य था लेह पहुंचना. लेकिन नौका घर से निकलने के लिए हमें चोटी नौका का इंतजार करना पड़ा फिर बड़ी मुश्किल से हम रोड तक आये जिसमे हमारा १ घंटे से ज्यादा बर्बाद हुआ. तापमान यहाँ गरम कपडे पहनने के बाद भी ठंढी लग रही थी सूरज की किरण शरीर पर पड़ते ही थोड़ा अच्छा महसूस होता था. डल तालाब से होते हुए हम आगे बढे करीब १० - ११ के बीच में सोनमार्ग पहुंचे.
सोनमर्ग, जिसका अर्थ है 'सोने की घास', अप्रैल के अंत में जब सोनमर्ग सड़क परिवहन के लिए खोला जाता है, तो आगंतुक बर्फ तक पहुंच सकते हैं जो एक सफेद कालीन की तरह सभी जगह सुसज्जित रहता है. गर्मियों के महीनों के दौरान थजीवास हिमानी तक की यात्रा लोग चल कर या घोड़े पर बैठ कर कर सकते है. सोनमर्ग  का मौसम स्य्हावना होता है, लेकिन कभी भी बारिश हो जाती है और कभी कभी तो भरी बारिस भी हो जाती है, लेकिन जुलाई और अगस्त में एक बार में दो या तीन दिनों के अलावा भारी बारिश नहीं होती है। सोनमर्ग से, ट्रैकिंग मार्ग विशनसर झील, कृष्णसर झील, गंगाबल झील और गडसर झील की हिमालय की झीलों तक जाते हैं, स्नोट्राउट और ब्राउन ट्राउट और सत्तार, हिमानी से घिरे और अल्पाइन फूलों के किनारों से घिरा हुआ है सोनमार्ग एक बहुत खूबसूरत पयर्टक स्थल है जिसकी खूबसूरती बेमिसाल है. यहाँ बर्फ से लदे पहाड़ जो सूरज किरणे पड़ते ही सुनहरे रंग चमकने लगते है, पास में से होकर गुजरने वाली नदी से आने वाले पानी की कलकलाहट कानो में एक अलग ही सुर घोल देते है
  
सोनमार्ग  लगभग ८० किलोमीटर दूर है श्रीनगर से, सुबह-सुबह रस्ते में  यातायात ना मिलने की वजह से हम ३ घंटे से पहले ही पहुँच गए. एकल सड़क और सड़क नदी के किनारे से छोटे छोटे खूबसूरत गावो से होकर गुजरता है जो एक साहसिक यात्रा जैसा प्रतीत होता है.
सोनमर्ग और इसके आसपास के क्षेत्र में कश्मीर घाटी के महान हिमालयी हिमानी कोल्होई हिमानी और माचोई हिमानी हैं जिनकी ऊँचाई 5,000 मीटर से अधिक है सोनमर्ग नाला सिंध के किनारे एक घाटी में स्थित है। यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो हिमालयी चोटियों के भीतर स्थित है। सोनमर्ग के लिए ड्राइव नाला सिंध से गुजरती है, जो कश्मीर घाटी में झेलम नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है। घास की भूमि और गाँव-बिंदीदार ढलानों को खोलने के लिए यह साठ मील लंबी घाटी और गहरी चट्टान-घाट के ऊपर है। सोनमर्ग इलाके का एक ऐतिहासिक महत्व है. यह प्राचीन रेशम रोड के साथ-साथ गिलगित कश्मीर को तिब्बत से जोड़ता है.

लगभग २ घंटे यहाँ बिताने के बाद हम आगे के लिए निकले जो ज़ोजी ला पास के नाम से जाना जाता है यह सोनमार्ग से १५ किलोमीटर की दूरी पर है यह उच्चतम मार्गो में से एक है जो इस यात्रा के दौरान का पहला उच्चतम मार्ग होगा जिसको हम पार करेंगे. हम लगभग १० किमी पहुंचे ही थे की पता चला की पहाड़ टूट के रोड पर गिरा है जो बीआरओ के लोग उसे हटाने में लगे हुए है इसमें सायद २ -३ घंटे लगेंगे. फिर हमने देखा के कुछ लोग एक दूसरा रास्ता पकड़कर जा रहे थे तो हमने भी वही मार्ग से जाना शुरू किया. लेकिन यह रास्ता बिलकुल ही ख़राब था यह उन मसीनो के लिए बनाया गया था जो पहाड़ टूट जाने के बाद वह जाने के लिए प्रयोग किये जाते थे. ये सड़क छोटे छोटे पथ्थर के टुकड़े और  मिट्टियों से बनी हुई थी उसके बावजूद ये सीधा मार्ग नहीं था यह ऊपर पहाड़ की तरफ चढ़ने वाला रास्ता था जिसमे फिसलने का और कोई भी दुर्घटना होने का पुरा मौका हो सकता था. इसमें अगर थोड़ी सी सावधानी घटी या नजर हटी तो अवस्य दुर्घटन हो सकता था, फिर भी हमने किसी तरह धीरे धीरे उस पहाड़ के पहुंचे अब ऊपर तो आ गए लेकिन वहा भी वही समस्या थी क्युकी सबसे ऊपर वाला पहाड़ टूटा था जिससे पहला और दूसरा दोनों रास्तो को बाध्य कर के रखा था जो पत्थर और मिट्टियों से लदे थे. 




ज़ोजी ला पास 15 किमी पूर्व में स्थित है और सड़क परिवहन के लिए उच्चतम मार्गों में से यह एक है. यह अभी भी NH 1D पर लद्दाख के लिए एक आधार शिविर है, और लद्दाख की रक्षा के लिए भारतीय सेना के लिए रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है. फ़िलहाल जोजिला के कठिन रस्ते को सहज बनाने के लिए सरकार ने उत्तम कदम उठाये है, यह रास्ता कुछ ही सालो में सुरंग में तब्दील हो जायेगा, सुरंग बनाने की योजना पास तो कर दिया है लेकिन समय, सुरक्षा और सामान को ध्यान में देखते हुए जितना जल्दी हो पायेगा काम शुरू कर देगा इससे यातायात में बारी सुविधा उत्पन्न होगी और जो हमें 2-३ घंटे का सफर ज़ोजी ला को पार करने मे लगता है वो सिर्फ आधे घंटे में तय कर पाएंगे. और ये शायद भारत का सबसे लम्बा सुरंग के नाम से विख्यात हो जायेगा. 
सोनमर्ग की सुंदरता को निहरने के बाद हमारे या ऐसा भी कह सकते है श्रीनगर से लेह जाने पर पहला और खतरनाक उच्चतम मार्ग है ज़ोजिला के लिए निकल पड़े. कुछ १०किमी ही चले थे की पता चला की रास्ता पहाड़ के गिरने  के कारन बंद हो गया है जहा बीआरओ के लोग काम कर रहे है इसमें 2-३ घंटे या इससे भी ज्यादा समय लग सकता है


पेंगोंग तालाब के आस पास का जीवन 
हम डिस्किट नुब्रा वैली से लगभग १0 बजे निकले 230 किलोमीटर की यात्रा पर पांगोंग तालाब के लिए और लगभग 3-४ बजे के आस पास पहुँच गए. १३४ किलोमीटर यह लबा तालाब लगभग ६० प्रतिसत चीन में है आवर ४० प्रतिसत भारत में है. यह तालाब ५ किलोमीटर चौड़ा है जो की सर्द के मौसम में ६०४ किलोमीटर जगह पूरा बर्फ बन जाता है यहाँ का तापमान सर्दी में -२० पहुंचता है, यह समुद्र तल से लगभग १४५०० की ऊंचाई पर स्थित है जहा आक्सीजन बस समझ ले की ठीक है कुछ कहने लायक नहीं बस न के बराबर ही समझे. हम सब ने एक-एक डायमकस खा राखी थी ताकि हमारी सांसे जल्दी जल्दी चले ताकि हमें आक्सीजन थोड़ा ज्यादा मिले और सांस लेने में परेशानी न महसूस हो.  मौसम का तापमान लगभग 15-१७ के बीच में खेल रहा था, सर्द हवाएं चल रही थी  थोड़ा डरे हुए थे लेकिन लोगो को देख के हौसला आ रहा था कभी मन में आता था की कही और जा कर ठहर जाये कभी ऐसा लगता था की नहीं यही सही है इस कशमकश में शाम हो गयी, सूर्य की सुनहरी किरने तालाब को मणि के जैसा चमचमाता बना दिया था जो एकदम से मनमोहक था. धीरे धीरे अँधेरा होने लगा देखते ही देखते पूरा वायुमंडल सितारों से सज गया मनो की जैसे शादी विवाह में जैसे हम घरो को सजाते है. अविश्वसनीय नजारा जो दिल में एक कोना पकड़ के बैठ गया. ऐसे भी सितारे चमकते है ये पहली बार देखा था हमने.

 

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