हरिहर गढ़ या हर्षगढ़ किले
अपने आप में दम ख़म रखता हुआ और अपने साहसिक चढ़ाई thrilling adventure के लिए जाने वाला यह हरिहर किल्ला महाराष्ट्र के हर्षगढ़ गांव में स्थित है जो की त्रिम्बक में त्रिंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग से १३ किलोमीटर की दूरी पर महाराष्ट्र के नासिक जिले में आता है. बरसात के मौसम में पुरे नासिक की सौंदर्त्यता किसी के भी मन को मोह लेने में और प्राकृतिक सौंदर्त्यता तो उसके मन में उतरने के लिए मशहूर है
मुस्किलो भरी है चढ़ाई
हरिफोर्ट की यात्रा हर्षगढ़ से शुरू होकर पैदल मार्ग कंकरीले पहाड़ो जहा पर कोई मनुष्य के द्वारा बनायीं गयी सड़क या रस्ते नहीं है बस प्रकृति के द्वारा पानी के बहाव से बने रास्तो पर से ही शुरू होती है, इसकी उचाई लगभग समुन्द्र तल ११३० मीटर पर स्थित है हर्षगढ़ गांव तक गाड़िया जा सकती है उसके बाद हमें प्रकृति के उस रस्ते अपनाने होते है जो अपने आप में करेजा हिला के रख दे राजा. हर्षगढ़ गांव से हरिहर फोर्ट तक की दूरी लगभग ३ किलोमीटर या उससे भी कम हो सकती है हलाकि ये बात झूठ भी हो सकती है क्युकी कुछ लोगो का कहते है की २.५ किलोमीटर ही है. लेकिन अनुमानतः इतनी ही है मेरे ख्याल से शुरुआत में लगभग १ से डेढ़ किलोमीटर तक की चढ़ाई सरल और सहज है करेजा बिलकुल नहीं हिलेगा लेकिन एकबात बता दे कहीं-कहीं पर समझ ही नहीं आता है की यही से वापस जाये या इस कठिन चट्टान को किसी तरह पार करें क्युकी साला एकदम खड़ी चढ़ाई है जान लीजिये .यही तो इस हरिहर पदयात्रा का मजा है कहीं सरक कहीं सजा है. एक बात का ख़ास ध्यान देना पड़ता है की जहा भी पानी भरा है वह सतर्क रहना बड़ा जरूरी है जान िजिये २-३ ठो साप मील गए थे देखते ही फट गयी लेकिन अपने आप को बहुत सम्हाले की की ये भी प्रकृति की देन है और इनके तो यही घर है, बीच बीच में सफर थोड़ा मुश्किल भरा था लेकिन साप के बिल में हाथ डाले है तो जरूर कटेगा मतलब जब ठान लिए है की हरिहर पूरा करना है तो मुस्किलो का सामना तो लाजमी है. बड़ा असमंजस में तब पड़ जाते है जब आपको कहीं कहीं तो रस्ते ही नहीं मिलते है और कहीं ३ - ४ रस्ते दिखते है साला समझ ही नहीं आता है की कौन सा रास्ता सही है और कौन सा गलत, हलाकि सभी रास्ते आगे जा कर एक ही जगह मिलते है. बड़ी जथ्थो जहत के बाद हम उस पड़ाव पर पहुंचे है जहा से रोमांचित खड़े चट्टान पर चढ़ने का वक्त आ गया है जिसे देख के पहले ही फट जाती है लेकिन यह तो हरिहर चढ़ाई का अनमोल, अविश्वश्नीय, अद्भुत और दहसत से भरा उन २ फ़ीट से लेकर ३ फ़ीट की सीढ़ियों पर चलना तो बाकी है लेकिन जान लीजिये एक बात बहुते अच्छी लगी की सीढ़ियों पर किनारे किनारे सहारा लेने के लिए खांचे बने थे जिसके सहारे कम दिक्कत और खाँचो के सहारे कम परेशानी झेलते हुए चढ़ाई कर सकते है. लेकिन ये बाबू बहुत सारे लोग तो ललका बनरन से परेशान थे काहे की वो सब इतने दुष्ट थे की बैग पकड़ के खींचते थे और बैग में रखे खाने वाले सामान ढूंढने लगते थे कभी कभी तो ससुरे पैंट की पॉकेट में हाथ हाथ दाल देते थे उनको कैसे बैग के चैन खोलने है वो भी बड़े अच्छे से जानते थे इसी सब की वजह से कुछ लोग खतरनाक सीढ़ियों पर चढ़ने के दौरान अपने अपने बैग को फेंकने पर मज़बूर हो जाते है और मेने कई लोगो को फेंकते हुए भी देखे है.